विकास दुबे कैसे बना कानपुर उत्तर प्रदेश का कुख्यात माफिया?
बचपन से क्रिमिनल रूप में विकास दुबे का विकास :
विकास दुबे 26 दिसंबर, 1964 को उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के बिकरू गांव में पैदा हुआ था। उनके पिता रामकृष्ण दुबे एक गांव के पंच थे जो बचपन से ही उनकी विदेशों की जिज्ञासा को पूरा करने के लिए उन्हें दूसरे गांवों में भेज देते थे। उनकी मां शांति दुबे एक घरेलू महिला थी जो गांव के लिए अपने पति के साथ सेवाएं करती थी।
विकास दुबे का बचपन दुष्प्रवृत्तियों के बीच बीता जिसमें वह अपने घर के बगड़े और अन्य लोगों से छोटे छोटे अपराधों की शुरुआत की। जल्द ही उनकी उम्र 15-16 वर्ष होते ही बड़े अपराधों में भी वे शामिल हो गए। उन्होंने नशे के अधीन अपराध किए, चोरी की, लूट की और दरबारों में लड़कों को बेचकर पैसे कमाये।
बचपन में विकास दुबे एक बुरे शिक्षक की भी शिकार हुए जो उन्हें जबरदस्ती पढ़ाना चाहता था। इससे वे उस विद्यालय में पढ़ने से मना कर दिये और बाद में अपनी पढ़ाई छोड़ दी।
क्राइम के क्षेत्र में प्रवेश:
विकास दुबे ने जल्द ही अपनी दबंगई और अपराधिक इतिहास के कारण क्राइम के क्षेत्र में अपना पैर जमाया। उन्होंने नशे के अधीन अपराध किए, चोरी की, लूट की और दरबारों में लड़कों को बेचकर पैसे कमाये। उन्होंने उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के बहुत सारे अपराधों में अपना हाथ जमाया जिसमें लूटपाट, हत्या, वापसी व्यापार आदि शामिल थे।
उनके अपराधी कैरियर की शुरुआत सामान्य अपराधों से हुई लेकिन जल्द ही वे बड़े अपराधों में भी शामिल हो गए। उन्होंने अपनी गुंडागर्दी के बीच दो बार जेल जाना पड़ा और फिर उनकी साजिशों और सत्ता के नेक नाम पर वे एक महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में ऊपर उठने लगे।
सत्ता के नेक नाम पर दुबे का राजनीतिक सम्बन्ध:
विकास दुबे ने राजनीति में भी अपना पैर जमाया। उन्होंने अपनी गुंडागर्दी के बीच सत्ता के नेक नाम पर राजनीतिक दलों के साथ संबंध बनाए। उन्होंने स्थानीय नेताओं और विधायकों को रक्षा दी और उनके चुनाव अभियानों में मदद की। इससे उन्हें स्थानीय नेताओं का समर्थन मिलता रहा और वे अपनी गुंडागर्दी को अन्य दलों के साथ भी जोड़ने में सक्षम हुए।
उन्होंने अपनी राजनीतिक ताकत का इस्तेमाल कर अपनी अपराधी कार्यक्षमता में और भी बढ़ोतरी की। उन्होंने अपने दल के सदस्यों को अपने उद्देश्यों के लिए उत्तर देने के लिए मजबूर किया जिससे उन्हें जान से मारने की आशंका नहीं रही। उनका राजनीतिक संबंध उन्हें अपराध के क्षेत्र में और भी सक्रिय बनाता गया जिससे उन्हें उनके अपराधों को स्वयं से बचाने का मौका मिलता रहा।
बिकरू मामले में दुबे और उनके साथियों की वजह से हत्या:
विकास दुबे और उनके साथियों के संबंध में बिकरू मामले में हत्या के मामले में बहुत साक्ष्य मिले हैं। 2 जुलाई, 2020 को उनके आश्रय से बिकरू मामले में दिल्ली के एक वकील संदीप बाजला की हत्या हुई थी। इस हत्या के मामले में पुलिस ने दुबे को गिरफ्तार किया था लेकिन उन्हें जल्द ही छूटने मिल गए।
बाद में, 3 जुलाई, 2020 को उनके घर पर एक स्थानीय व्यापारी की हत्या के मामले में पुलिस ने दुबे को फिर से गिरफ्तार किया था। इस हत्या के मामले में भी दुबे और उनके साथियों का संलग्न होने का संदेह था।
जब पुलिस ने दुबे को गिरफ्तार किया था, तब वे और उनके साथियों ने एक पुलिस कार में फायरिंग की और उस पुलिस कार के 8 पुलिसवालों को मार डाला। इस घटना के बाद दुबे और उनके साथियों को राज्य सरकार ने एनकाउंटर में मार डाला।
महाकाल मंदिर से गिरफ्तारी और एनकाउंटर:
दुबे का महाकाल मंदिर से गिरफ्तारी और एनकाउंटर दो अलग-अलग घटनाओं से संबंधित हैं।
पहले बात करते हैं दुबे के महाकाल मंदिर से गिरफ्तारी की। 2002 में, उन्हें मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले में स्थित महाकाल मंदिर के पास से गिरफ्तार किया गया था। दुबे को कई गंभीर अपराधों, जैसे कि हत्या, दाखिल-ख़ारिज और उच्चस्तरीय गोलीबारी जैसे अपराधों के लिए खोज रही थी।
अब बात करते हैं दुबे के महाकाल मंदिर से एनकाउंटर की। 10 जुलाई 2020 को, उन्हें शिवपुरी जिले में एक साधु के आश्रम में मिला था। पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार करने का प्रयास किया लेकिन दुबे बचने के लिए पलायन करने की कोशिश की। इसके बाद एक एनकाउंटर के दौरान, उन्हें मार गिराया गया।
यह समाचार राष्ट्रीय स्तर पर बहुत चर्चा का विषय बना था और इससे अनेक विवादों ने जन्म लिया।
दुबे की मौत पर विवाद:
दुबे के महाकाल मंदिर से एनकाउंटर में मृत्यु होने पर बहुत सारे विवाद हुए थे।
कुछ लोग इसे उच्च स्तरीय गोलीबारी के रूप में देखते हैं जबकि कुछ लोग इसे स्वयंसेवकों द्वारा किया गया जानलेवा प्रहार मानते हैं।
कुछ लोग इसे एनकाउंटर के रूप में सही मानते हैं, जबकि कुछ लोग इसे एक गैरकानूनी और शास्त्रीय कदम मानते हैं।
दुबे की मृत्यु के सम्बन्ध में कई विस्तृत जांच और तफ़सीली रिपोर्ट जारी की गई हैं। अधिकांश रिपोर्ट्स इस बात का खुलासा करती हैं कि दुबे ने आतंकवाद के कई मामलों में शामिल होने के आरोप में घनिष्ठ था। इस वजह से उन्हें एनकाउंटर के दौरान जख्म ज़ख़्मी होने के बाद मौत हो गई थी।
अंततः, इस मामले में अधिक स्पष्टता के लिए सरकार द्वारा स्वयं निर्धारित स्वतंत्र जांच की मांग की गई थी।
दुबे के मौत के बाद समस्त प्रक्रिया:
विकास दुबे की मौत के बाद, समस्त प्रक्रिया दिनांक 3 जुलाई 2020 को समाप्त हुई थी। उनके मौत के बाद, पुलिस ने संज्ञेय मामले के रूप में एक मुख्यालय दर्ज किया और जाँच शुरू की।
पुलिस ने दुबे के मृत्यु के सम्बंध में अभियोग पंजीकृत किए थे और जांच के दौरान उनके सम्बंधित अधिकारियों द्वारा दी गई रिपोर्ट को भी दाखिल किया गया था।
दुबे के मृत्यु के बाद, उनके परिजनों ने उनके शव को निकालने के लिए आवेदन किया था और शव को उनके गांव तक ले जाया गया था।
इस मामले में एनकाउंटर की जांच के लिए सरकार ने स्वतंत्र जांच की मांग की थी। उसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में एक पिटीशन दाखिल की थी जिसमें सरकार ने एक संसदीय समिति की गठन की मांग की थी जो इस मामले की जांच करती है।
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